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बिहार की आवाज जन सुराज

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

जन सुराज से संबंधित पूछे जाने वालों प्रश्नों के उत्तर →

जन सुराज क्या है?

जन का मतलब लोग और सुराज का मतलब सुंदर राज इसलिए जन सुराज का मतलब हुआ जनता का सुंदर राज यानी लोगों की अच्छी सरकार।

हमारा मानना है कि सही लोग वे लोग हैं जिनकी समाज में साफ सुथरी छवि हो और जो समाज में एक अच्छा बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं क्योंकि सही लोगों को मजबूत बनाया जा सकता है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि मजबूत लोग सही लोग हों।

सही सोच का मतलब है “जो समाज के लिए कुछ करना चाहते हों और ईमानदारी से राज्य का विकास चाहते हों “।

सामूहिक प्रयास से मतलब है कि समाज के सभी अच्छे लोग एकजुट होकर प्रयास करें तभी बिहार को सुधारा जा सकता है।

1. समाज की मदद से जमीनी स्तर पर सही लोगों को चिन्हित करना और उनको एक लोकतांत्रिक मंच पर लाने का प्रयास करना।

2. स्थानीय समस्याओं और संभावनाओं को बेहतर तरीके से समझना और उसके आधार पर नगरों एवं पंचायतों की प्राथमिकताओं को सूचीबद्ध कर, उनके विकास का ब्लूप्रिंट बनाना।
3. बिहार के समग्र विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आर्थिक, विकास, कृषि, उद्योग और सामाजिक न्याय जैसे 10 महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विशेषज्ञों और लोगों के सुझावों के आधार पर अगले 15 साल का एक विजन डॉक्यूमेंट तैयार करना।

बिहार राजनीतिक अस्थिरता वाला राज्य था। 1967 से 1990 के बीच 23 साल में बिहार में 25 सरकारें आयीं और गयीं साथ ही 5 बार राष्ट्रपति शासन लगा और 20 अलग-अलग लोग मुख्यमंत्री बने, 1990 से जब लालू जी ने सत्ता संभाली तो उन्होंने सामाजिक न्याय को लेकर कुछ प्रयास किए लेकिन जिन वर्गों को उन्होंने आवाज दी उन्हें शिक्षा, जमीन या पूंजी नहीं दी। साथ ही उनके शासनकाल में अपराध इतना बढ़ गया कि इसे जंगलराज कहा जाने लगा. साल 2005 में नीतीश कुमार जी सत्ता में आए उन्होंने कुछ काम भी किए लेकिन 2004 में बिहार प्रति व्यक्ति आय में देश में 28 वें नम्बर पर था और नीतीश जी के 18 साल के शासन के वावजूद बिहार प्रति व्यक्ति आय में आज भी अंतिम पायदान पर ही बना हुआ है। इससे पता चलता है कि अन्य राज्यों की तुलना में बिहार के विकास की गति बहुत धीरे ही रही।


अगर कोई व्यक्ति या दल यह कहता है कि वह बिहार को सुधार देगा तो वह या तो बेवकूफ है या आपको बेवकूफ बना रहा है। उसको पता नहीं है कि समस्या कितनी बड़ी है। इसका समाधान कोई भी अकेले नहीं कर सकता है। इस समस्या को समाज की ताकत को जोड़कर ही हल किया जा सकता है। बिहार के लोग बेवकूफ नहीं हैं यहां की व्यवस्था ने इनको बांधकर रखा है।

नया बिहार

लोग क्या कहते हैं — डॉ. शोएब अहमद खान

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